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सोमवार, दिसंबर 20, 2010

तेरे बगैर.....


तन्हा तन्हा सा हुआ हर मंजर तेरे बगैर 
वीरान सा दिखता है अब ये घर तेरे बगैर 

जर्द जर्द सा है मौसम, घटाएं सीली सीली 
धुंआ धुंआ सी लगे है शामो सहर तेरे बगैर

फलक पे चाँद तारों का निशाँ नहीं मिलता
सब खाली खाली सा आता नज़र तेरे बगैर 

गिला किससे करें किसको गम कहें अपना 
हंसती रहती है बस ये चश्मे-तर तेरे बगैर 

सहरा सा हो चला अब तो आलम ये सारा 
कहीं गुल है, ना समर, ना शजर तेरे बगैर 

बेसबब ही भटकते हैं अब तो यहाँ वहां हम 
हावी वहशत है जेहन पे इस कदर तेरे बगैर

8 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामी21 दिसंबर, 2010

    आपकी इस सुन्दर और सशक्त रचना की चर्चा
    आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    http://charchamanch.uchcharan.com/2010/12/375.html

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  2. मुद्दत हुई अब आप नज़र नही आते
    आजकल आप हमारे घर नही आते ((आपके ही शेर को तोड़ा मरोड़ा है)

    पहले मेरे चाँद की निगरानी करते थे
    अब तो खुद ईद पे भी नजर नही आते

    hmmmmm......KK ji......
    jard jard sa mousam ,,,,hmmbahut pyaari gazal hui he
    take care ...

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  3. बहुत खूब .. उनके बिना तो सब कुछ सूना सूना होता है ... लाजवाब शेर हैं जुदाई भरे ...

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  4. हरमन साहब.....शुक्रिया...जल्दी ही आयेंगे आपके ब्लॉग पे भी..

    वंदना जी...... आभार

    मयंक साहब.... शुक्रिया... रचना को सभी के सम्मुख ले जाने हेतु.. स्नेह बनाये रखें..

    कुशुमेश जी.....शुक्रिया..

    जोया...शुक्रिया..यार वक़्त बहुत कम होता है आजकल....आऊंगा जरुर.. भुला नहीं हूँ चाँद को... हाँ अमावस लम्बी ज्यादा हो गयी है...By d way thnx for sharing ur views.

    अनुपमा जी..शुक्रिया

    दिगंबर जी...आभार

    आशुतोष जी.....आभार

    संगीता जी.....आपका आना हमेशा से ही खुबुस्रत रहा है... शुक्रिया

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