तन्हा तन्हा सा हुआ हर मंजर तेरे बगैर
वीरान सा दिखता है अब ये घर तेरे बगैर
जर्द जर्द सा है मौसम, घटाएं सीली सीली
धुंआ धुंआ सी लगे है शामो सहर तेरे बगैर
फलक पे चाँद तारों का निशाँ नहीं मिलता
सब खाली खाली सा आता नज़र तेरे बगैर
गिला किससे करें किसको गम कहें अपना
हंसती रहती है बस ये चश्मे-तर तेरे बगैर
सहरा सा हो चला अब तो आलम ये सारा
कहीं गुल है, ना समर, ना शजर तेरे बगैर
बेसबब ही भटकते हैं अब तो यहाँ वहां हम
हावी वहशत है जेहन पे इस कदर तेरे बगैर
bahut hi pyara likha hai,...
जवाब देंहटाएंmere blog par bhi kabhi aaiye
Lyrics Mantra
बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी इस सुन्दर और सशक्त रचना की चर्चा
जवाब देंहटाएंआज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
http://charchamanch.uchcharan.com/2010/12/375.html
मुद्दत हुई अब आप नज़र नही आते
जवाब देंहटाएंआजकल आप हमारे घर नही आते ((आपके ही शेर को तोड़ा मरोड़ा है)
पहले मेरे चाँद की निगरानी करते थे
अब तो खुद ईद पे भी नजर नही आते
hmmmmm......KK ji......
jard jard sa mousam ,,,,hmmbahut pyaari gazal hui he
take care ...
सुन्दर!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .. उनके बिना तो सब कुछ सूना सूना होता है ... लाजवाब शेर हैं जुदाई भरे ...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत गज़ल ...हमेशा की तरह
जवाब देंहटाएंहरमन साहब.....शुक्रिया...जल्दी ही आयेंगे आपके ब्लॉग पे भी..
जवाब देंहटाएंवंदना जी...... आभार
मयंक साहब.... शुक्रिया... रचना को सभी के सम्मुख ले जाने हेतु.. स्नेह बनाये रखें..
कुशुमेश जी.....शुक्रिया..
जोया...शुक्रिया..यार वक़्त बहुत कम होता है आजकल....आऊंगा जरुर.. भुला नहीं हूँ चाँद को... हाँ अमावस लम्बी ज्यादा हो गयी है...By d way thnx for sharing ur views.
अनुपमा जी..शुक्रिया
दिगंबर जी...आभार
आशुतोष जी.....आभार
संगीता जी.....आपका आना हमेशा से ही खुबुस्रत रहा है... शुक्रिया