किसी सहर की ताजगी तुम हो
गुलों की हसीन सादगी तुम हो
नहीं जाता मैं सजदे में कहीं पे
मेरा खुदा तुम हो बंदगी तुम हो
मेरे तरन्नुम पे रक्स करती हुई
अब ख्यालों की मौशिकी तुम हो
यूँ ही नहीं गुम तुम्हारे प्यार में
मेरी अहद-ए-आशिकी तुम हो
सांस भी लूँ तो तुम्हारा ख्याल आये
लगता है के जैसे जिन्दगी तुम हो
बहुत सुन्दर गज़ल .. कल शुक्रवार १७-१२-२०१० को आपकी यह रचना चर्चामंच पर होगी .. आप वहाँ भी अपने विचार दें और अन्य रचनाओ को पढ़ें .. http://charchamanch.blogspot.com
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गज़ल्।
जवाब देंहटाएंsundar!
जवाब देंहटाएंआप सभी का बहुत बहुत आभार....हौसला और वक़्त देने के लिए.....
जवाब देंहटाएंसमयाभाव के कारण ज्यादा नहीं आ पात हूँ.. कई रचनाये रचनामंच पे भी शामिल हुईं.
इस हेतु स्सभु गुनीजनों का धन्यवाद... जो आपने इस नाचीज को समझा और सराहा...
यूँ ही आते रहें...शुक्रिया