उनके होठों पे फिर इक नया बहाना रहता है
जब भी किये वादे पे उन्हें ना आना रहता है
और हम नहीं के उनपे तोहमते लगाया करें
हमे तो हर लम्हा इंतज़ार में बिताना रहता है
नाम कुछ भी रख लो, रांझा, मजनू या महिवाल
जो दीवाना है वो तो बस दीवाना रहता है
हिज्र में ये आँखें बरसती हैं रात-रात भर
जेहन में यादों के अब्र का आना-जाना रहता है
उनके दीद को नज़रें राहों पे लगी रहती हैं
ख्यालों के साज़ पे बस उनका ही तराना रहता है
अपनी तन्हाई की बज़्म रास बहुत आती है 'राज़'
यहाँ का दर्द-ओ-अलम बहुत पहचाना रहता है
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंbahut achhi rachna! badhayee!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत ग़ज़ल ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल
जवाब देंहटाएंउनके होठों पे फिर इक नया बहाना रहता है
जवाब देंहटाएंजब भी किये वादे पे उन्हें ना आना रहता है
और हम नहीं के उनपे तोहमते लगाया करें
हमे तो हर लम्हा इंतज़ार में बिताना रहता है
वाह वाह! क्या खूब कहा है…………बहुत सुन्दर अन्दाज़्।
अच्छी रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार गजल लिखी है आपने!
जवाब देंहटाएंभावनाओ से जुड़े पहलू रचना बेहद सुन्दर है …. उम्दा … शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंआप सभी ने जो हौसला दिया है उसके लिए दिल से आभार....
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