उसपे अब भी मेरा ऐतबार काफी है
इस दिल को भी इंतज़ार काफी है
मेरे बदन पे ज़ख्मो का सिलसिला
इश्क में इक यही यादगार काफी है
ईद और चाँद नज़र आये ना आये
माशूक का अपनी दीदार काफी है
ना आज़मा हौसला सितमगर मेरे
तुझे क्या पता सब्रो-करार काफी है
जफा करके वो भी तो रोया है यारों
चलो हुआ इतना शर्मसार काफी है
मेरी खातिर अब ऐ चरागारों मेरे
गम की ये फसल-ए-बहार काफी है
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