तेरा गम तुझी से छुपा कर के रोये
कभी याद कर के भुला कर के रोये
जफा उसने हमसे निभाई बहुत थी
के गैरों से फिर वो वफ़ा कर के रोये
चरागों से उल्फत रही जब न बाकी
भरी तीरगी में बुझा कर के रोये
अयादत मिरी अब करे कौन यारों
यही गम जेहन में सजा कर के रोये
है रुसवा बहर और अलफ़ाज़ गीले
इन्ही पे ग़ज़ल गुनगुना कर के रोये
यूँ समझा न कोई मेरा हाले-दिल जब
खुदी हम, खुदी को, सुना कर के रोये
थे काफ़िर सरीखे तो कुछ वो सही थे
यूँ सजदा, इबादत, खुदा कर के रोये
मिरी इल्तिजा थी, जरा देर रुकते
हुआ ना ये उनसे, जता कर के रोये
ख्वाबों ख्यालों में रह-रह के आये
यही इक रही जो खता कर के रोये
हिजर के ये मेले लगें ना कहीं पर
यही"राज"सबको दुआ करके रोये
*******************
Bahar....122 122 122 122
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Plz give your response....