खो गया है मेरी दीवारों दर का पता
नहीं मिलता मुझे मेरे घर का पता
यूँ चल तो रहा हूँ दुनिया की भीड़ में
ना मंजिल का पता ना सफ़र का पता
जो मिटा दे यहाँ शब् की तासीर को
ले के आये कोई ऐसी सहर का पता
ज़माने को क्या फ़िक्र तन्हाई की मेरी
ढूंढे कौन दश्तो में तन्हा शजर का पता
यूँ देखकर के आइना मुझे हैंरान क्यूँ है
क्या मुझमे है किसी वीराँ शहर का पता
अपने माजी का उसपे क्या इल्जाम दूँ
रखता हूँ गुमनाम दर्दे-जिगर का पता
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल ,,आपके सफल भविष्य का आइना दिखाती हुई ..बधाई
जवाब देंहटाएंhttp://athaah.blogspot.com/
सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।
जवाब देंहटाएंराजेंद्र भाई.....और.....संजय भाई,,,,,, दिल से आभार व्यक्त करता हूँ ..
जवाब देंहटाएंजो आप नियमित समय निकाल कर मेरी कृति को देखते हैं और उसमे छिपी भावनाओ को समझते हैं....
खुश रहिये..................शुक्रिया...............दुआओं के साथ
kahan kahan pe lute ho shumar mat karna
जवाब देंहटाएंmagar kisi pe bhi ab etibar mat karna
main lotne ke irade se jaraha hon magar
safar safar hai mera intizar mat karna
bahu khoob ji....
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