ख्वाब लिख रहा हूँ मैं ख्याल लिख रहा हूँ
ग़ज़ल में अपने दिल का हाल लिख रहा हूँ
मैं हूँ काफिर या हूँ, मुसलमाँ मेरे अहबाबों
उलझनों में उलझा, ये सवाल लिख रहा हूँ
घर के चराग ने जब लगा दी आग घर को
तूफां से हो अब कैसा मलाल लिख रहा हूँ
कैसे मैं अपने आप को देता हूँ धोखा यहाँ
लबों पे हंसी आँखों में शलाल लिख रहा हूँ
ये दीवारों दर मेरी ऩजर आती हैं बेगानी सी
अपने ही घर से है हुआ बवाल लिख रहा हूँ
लौट कर नहीं आते वो लम्हे जो गुजर जाएँ
जाने क्यूँ मगर उम्मीदे-विसाल लिख रहा हूँ
और वो है के कहता है अब भूल जाओ मुझे
इक यही नहीं होता कारे-मुहाल लिख रहा हूँ
सोते सोते रातों को बस जाग जाता हूँ "राज"
इंतजार किसी का यूँ सालों साल लिख रहा हूँ
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कारे-मुहाल--Difficult work
वाह ! कितनी सुन्दर पंक्तियाँ हैं ... मन मोह लिया इस चित्र ने तो !
जवाब देंहटाएं..नया अंदाज है कहने का..बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंसंजय भाई और उम्मीद भाई ....दिल से शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंआप लोग बहुत ध्यान देते हैं मेरी रचनाओ पे.....
बस यूँ ही हौसला बनाये रखिये मेरा....ख़ुशी होती है....