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रविवार, जून 27, 2010

फिर वो मौसम सुहाने याद आये


यूँ ही थे साथ जो गुजरे ज़माने याद आये 
हमको फिर वो मौसम सुहाने याद आये 

जख्मो की जब सौगात हुई नसीब अपने 
तुम्हारे हाथों के मरहम पुराने याद आये 

मेरा इंतजार और उसपे तुम्हारा ना आना 
बारिश तो कभी शाम के बहाने याद आये 

जफा-ओ-वफ़ा की मैं और मिसाल क्या दूँ 
कुछ शम्में याद आयीं,  परवाने याद आये 

दवा से इलाजे-दर्दे-दिल हुआ न मुक्क़मल
साकी की आँखों से मिले पैमाने याद आये 

तेरे बगैर जिन्दगी की तो तहरीर ना बनी 
याद आये तो तन्हा से अफ़साने याद आये 

"राज" क्या बिसात भला इश्क में है तेरी 
सोचा तो मजनूँ से कई दीवाने याद आये 

7 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई।

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  2. bahut pyari hai, achha laga padhna

    shubhkamnayen

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  3. शोभा जी.....शिरकत करने के लिए शुक्रिया... उम्मीद करूँगा आना जाना लगा रहेगा..

    संगीता जी.......आभार......हौसला देती रहिएगा...

    माधव जी......आप यहाँ तक आये....शुक्रगुजार हूँ

    प्रीत.................शुक्रिया.....भावनाएं समझने के लिए

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  4. मंगलवार 29 06- 2010 को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार


    http://charchamanch.blogspot.com/

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  5. शुक्रिया .............संगीता जी...

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