यूँ ही थे साथ जो गुजरे ज़माने याद आये
हमको फिर वो मौसम सुहाने याद आये
जख्मो की जब सौगात हुई नसीब अपने
तुम्हारे हाथों के मरहम पुराने याद आये
मेरा इंतजार और उसपे तुम्हारा ना आना
बारिश तो कभी शाम के बहाने याद आये
जफा-ओ-वफ़ा की मैं और मिसाल क्या दूँ
कुछ शम्में याद आयीं, परवाने याद आये
दवा से इलाजे-दर्दे-दिल हुआ न मुक्क़मल
साकी की आँखों से मिले पैमाने याद आये
तेरे बगैर जिन्दगी की तो तहरीर ना बनी
याद आये तो तन्हा से अफ़साने याद आये
"राज" क्या बिसात भला इश्क में है तेरी
सोचा तो मजनूँ से कई दीवाने याद आये
वाह बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत ग़ज़ल..
जवाब देंहटाएंnice poem
जवाब देंहटाएंbahut pyari hai, achha laga padhna
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
शोभा जी.....शिरकत करने के लिए शुक्रिया... उम्मीद करूँगा आना जाना लगा रहेगा..
जवाब देंहटाएंसंगीता जी.......आभार......हौसला देती रहिएगा...
माधव जी......आप यहाँ तक आये....शुक्रगुजार हूँ
प्रीत.................शुक्रिया.....भावनाएं समझने के लिए
मंगलवार 29 06- 2010 को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/
शुक्रिया .............संगीता जी...
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