लोकप्रिय पोस्ट

मंगलवार, मई 04, 2010

हर इक शय में खुदा हर बशर में खुदा


हर इक शय में खुदा हर बशर में खुदा 
देखो तो मिल जाता है घर घर में खुदा 

तकसीम तो कर रखी है हमी ने यहाँ 
वरना तो बसा हर इक नजर में खुदा 

मौसमों की रवायतें बनी उसके दम से 
शब् की रंगीनी औ ताजा सहर में खुदा 

शाखे गुल की फितरत यूँ नहीं मुख़्तसर 
शजर में खुदा है तो फिर समर में खुदा 

क़दमों में गर हो जरा भी हौसला तुम्हारे 
फिर मंजिल में खुदा हर सफ़र में खुदा 

ना जाऊं मैं मंदिर, ना मस्जिद मैं जाऊं 
हो सच्ची इबादत, मिले पत्थर में खुदा 

इतनी हैरत से मुझको तो ना देखो यारों 
"राज" होके काफिर रखे जिगर में खुदा 

2 टिप्‍पणियां:

Plz give your response....