हर इक शय में खुदा हर बशर में खुदा
देखो तो मिल जाता है घर घर में खुदा
तकसीम तो कर रखी है हमी ने यहाँ
वरना तो बसा हर इक नजर में खुदा
मौसमों की रवायतें बनी उसके दम से
शब् की रंगीनी औ ताजा सहर में खुदा
शाखे गुल की फितरत यूँ नहीं मुख़्तसर
शजर में खुदा है तो फिर समर में खुदा
क़दमों में गर हो जरा भी हौसला तुम्हारे
फिर मंजिल में खुदा हर सफ़र में खुदा
ना जाऊं मैं मंदिर, ना मस्जिद मैं जाऊं
हो सच्ची इबादत, मिले पत्थर में खुदा
इतनी हैरत से मुझको तो ना देखो यारों
"राज" होके काफिर रखे जिगर में खुदा
कुछ शीतल सी ताजगी का अहसास करा गई आपकी रचना।
जवाब देंहटाएंshukirya bhai.......hausla afzai karte rahe..
जवाब देंहटाएंduao ke saath....