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बुधवार, अप्रैल 28, 2010

बड़ी हसरत रही है खुद को आजमाने की


बड़ी हसरत रही है खुद को आजमाने की 
मोहब्बत करके, इक और चोट खाने की 

गर उन आँखों से जो सागर पिए बैठा हो 
तशनगी फिर कहाँ मिटती है दीवाने की 

होश में आये जब और दर्द बढ़ गया थोडा 
याद आई हमे उस जाम-ओ-मयखाने की 

कहर-ए-बर्क जब हुआ आशियाने पे मेरे 
नजर भर आयी अदा तेरी मुस्कराने की 

शब् से सहर, सहर से शब्, हो जाए जब 
खबर कर देना, उनके आने की जाने की 

शमा जल-२ के खुद को रंगीं क्या कर दे 
तवज्जो फिर नहीं होती इस परवाने की 

शिकवे गिले हैं उनसे फिर भी नहीं कहते 
खामोश करती है अदा उनके शरमाने की

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है

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  2. बहुत अच्छाल लिखते है आप, आपको लगता है किसी से मोहब्बीत है और उसने आपका ि‍दल तोड् दिया है, आपके दिल में बहुत दर्द छिपा है यदि आप हम से बाटना चाहें तो बांट सकते है

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  3. आपको इस पोस्ट के लिए एक मेल की है जरूर देखें

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  4. संजय भाई ...
    जी पी साहब.....
    वीनस भाई....

    शुक्रिया ...बस मन के भाव हैं जो शब्दों के माध्यम से व्यक्त करता हूँ....आप सबने समझा...आभारी हूँ....दुआओं के साथ

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