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शुक्रवार, अप्रैल 02, 2010

फूलों की सादगी और बादे सबा लगती हो


फूलों की सादगी और बादे सबा लगती हो
खुदा के दर तक पहुंचे वो दुआ लगती हो

शाम तुम्हारे गेसुओं के साए में पलती है 
सहर हो जिस से वो ताजा हवा लगती हो 

तुम्हारे दीद से सजदे का मन हो जाता है 
काफिरों को जैसे सूरत-ए-खुदा लगती हो 

सहरा में हैं जो बशर जाकर उनसे पूछो 
उनके दर के मौसमो का पता लगती हो 

तारीकियाँ जब भी मेरे घर में बिखरती है 
तुम चाँद तो कभी जलता दिया लगती हो 

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