फूलों की सादगी और बादे सबा लगती हो
खुदा के दर तक पहुंचे वो दुआ लगती हो
शाम तुम्हारे गेसुओं के साए में पलती है
सहर हो जिस से वो ताजा हवा लगती हो
तुम्हारे दीद से सजदे का मन हो जाता है
काफिरों को जैसे सूरत-ए-खुदा लगती हो
सहरा में हैं जो बशर जाकर उनसे पूछो
उनके दर के मौसमो का पता लगती हो
तारीकियाँ जब भी मेरे घर में बिखरती है
तुम चाँद तो कभी जलता दिया लगती हो
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआख़री शेर खास पसंद आया
shukriya bhai saab......yun hi aate jaate rahe
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