लोकप्रिय पोस्ट

शुक्रवार, मार्च 19, 2010

अहदे वफ़ा कुछ यूँ भी निभाते रहे


अहदे वफ़ा कुछ यूँ भी निभाते रहे 
जख्म खाके भी हम मुस्कराते रहे 

मौज आयी गर तो बिखर जाएगा 
ये जानके भी रेत पे घर बनाते रहे 

जिसकी आमद पे आँखे खुली रही 
सिवाय उनके सभी लोग आते रहे 

न की रकीबों से भी रकीबत हमने 
बस सबसे दुआ सलाम उठाते रहे 

कोई संजीदा शख्स मिला जब यूँ 
उसको भी सीने से हम लगाते रहे 

औ कैसे मेरी यादों के हर्फ़ मिटाए 
सुना शब् भर ख़त मेरे जलाते रहे

2 टिप्‍पणियां:

Plz give your response....