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सोमवार, अप्रैल 27, 2009

कौन देखेगा



अबके इन हवाओं का सफ़र कौन देखेगा 
हम ही ना होंगे तो ये घर कौन देखेगा...

पतझर आएगा तो गुल भी ना होंगे 
तनहा तनहा सा ये शजर कौन देखेगा...

जहाँ तक है नजर जमीं सेहरा हुई है 
घटा बरसेगी भी तो असर कौन देखेगा...

परिंदे छोड़ कर बस्तियां दूर जाने लगे 
शब् बीत भी जाए तो सहर कौन देखेगा...

जिसके दम से अब तक आबाद थी गलियां 
"राज" चला गया तो शहर कौन देखेगा...

3 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा लिखा है आपने , इस शानदार लेखन के लिए बधाई , साथ ही आपका चिटठा भी बहुत खूबसूरत है ,
    इसी तरह लिखते रहे , हमें भी उर्जा मिलेगी ।

    धन्यवाद ,
    मयूर
    अपनी अपनी डगर

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्छा लिखा है आपने , इस शानदार लेखन के लिए बधाई , साथ ही आपका चिटठा भी बहुत खूबसूरत है ,
    इसी तरह लिखते रहे , हमें भी उर्जा मिलेगी ।

    धन्यवाद ,
    मयूर
    अपनी अपनी डगर

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  3. mayur bhai thanx......aapne apna keemti waqt diya

    जवाब देंहटाएं

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