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मंगलवार, अगस्त 07, 2012




मैं तो छुपा लेता हूँ, पर ये बता देता है
मेरा चेहरा मेरे हालात का पता देता है 

वो अहसान फिर अहसान नहीं रहता  
कोई कर के जब सब को सुना देता है  

जब कभी भी रुतबे का गुमाँ आता है 
मेरा माजी मुझे आईना दिखा देता है 

कौन भला उम्र भर साथ देता है यहाँ 
सूख जाएँ तो पेड़ भी पत्ते गिरा देता है 

इन्सां होता है बहरा जहाँ काम ना हो 
जहाँ हो काम वहाँ, कान लगा देता है 

ग़ज़ल की दास्तान होती है खूबसूरत 
ढंग से कोई जो उन्वान निभा देता है 

किस्मत में फतह है तो हो कर रहेगी 
क्या हुआ जो कोई हमे बद्दुआ देता है

यहाँ तो इक आरज़ू भी पूरी नहीं होती  
जाने लोगों को क्या-क्या खुदा देता है   

तुम भी इक अजीब ही शख्स हो "राज़" 
याद उसे रखोगे, जो तुम्हे भुला देता है 

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