हमारे सर पे भी एक आसमान रहता है
दुआओं सा जो कोई निगहेबान रहता है
तुम नमाज़ी हो तो क्या समझोगे कभी
खुदा काफिरों पे कहाँ मेहरबान रहता है
इस तन्हा शब् को जिसकी याद आती है
सहर की नमी में उसका निशान रहता है
उसके आँचल की छाँव ना हो जब तलक
घर, घर नहीं बनता बस मकान रहता है
बिछड़कर के मरते तो नहीं हैं हम दोनों
हाँ, बस जिन्दा रहने का गुमान रहता है
कुछ और नहीं है ये एहतियातों के सिवा
जो फासला दोनों के दरमियान रहता है
तुम नमाज़ी हो तो क्या समझोगे कभी
जवाब देंहटाएंखुदा काफिरों पे कहाँ मेहरबान रहता है
इस तन्हा शब् को जिसकी याद आती है
सहर की नमी में उसका निशान रहता है।
सच कहा और जबर्दस्त कहा...
अगर इच्छा हो तो इसे पढ़ें--- http://kavita-knkayastha.blogspot.com/2010/04/blog-post_06.html
तुम नमाज़ी हो तो क्या समझोगे कभी
जवाब देंहटाएंखुदा काफिरों पे कहाँ मेहरबान रहता है.
बहुत खूब बात कही है वाह.. वाह..
bahut sundar ghazal.bahut khoob
जवाब देंहटाएंbahut badiya umda gajal..
जवाब देंहटाएंआभार आप सभी का, अपना कीमती वक़्त देने के लिए.....
जवाब देंहटाएंReal imagination depth sir ji
जवाब देंहटाएं