कुछ और नहीं, है ये इनायत इश्क के बुखार की
के सभी कुछ हो मगर, जाए ना जान बीमार की
मुहल्ले की हर खबर तो इन लुगाईयों के पास है
क्या जरुरत रह जाए है फिर घर में अखबार की
उसको भी शौक नहीं है अपना गाँव छोड़ देने का
शहर में खींच लाती है बस ये वजह रोजगार की
आज-कल तो चापलूसों का ही ज़माना रह गया
कद्र ही कहाँ रह गयी है अब अच्छे फनकार की
बुतों को पूजने वाले और नमाज़ी भी जानते हैं
खुदा भी ना ले सकेगा जगह माँ के किरदार की
सब मिलता है बाज़ार में बस यही नहीं मिलती
दुआएं लेने की औकात नहीं किसी खरीददार की
मेरे लफ़्ज़ों की गहराइयों तक उतरे कौन भला
सबको बातें मेरी लगती हैं बस यूँ ही बेकार की
"सबको मेरी बातें बस लगती हैं बेकार सी"
जवाब देंहटाएंऐसी तो कोई बात नहीं, हमें तो सब शेर बहुत पसंद आये! खासकर १ और ३
शुक्रिया.....
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