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रविवार, सितंबर 11, 2011

तेरी दुआ से कितनी बरकत है आजकल




शब् की तो अच्छी सियासत है आजकल
घर को तीरगी से ही मुहब्बत है आजकल

उसे भूल चुके हैं पर हिचकियाँ नहीं जातीं
दिल की ये भी अजीब हरकत है आजकल

ख्वाब. खलिश, चुभन, दर्द, यादें, बेबसी
इश्क में लगी कैसी तोहमत है आजकल

सोते से बेसबब ही जाग पड़ता हूँ मैं यूँ ही
नींद में जाने कैसी ये वहशत है आजकल

और हमारे आँगन में भी दरिया बरसा करे
पर खुदा की कहाँ हमपे रहमत है आजकल

अपनी परेशानी में ही इजाफा करते हैं बस
देख तेरी दुआ से बहुत बरकत है आजकल

4 टिप्‍पणियां:

  1. आप बहुत अच्छा लिखता हैं और इसकी पुष्टि आपकी यह ग़ज़ल कर रही है

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  2. बहुत खूब ... लाजवाब गज़ल है हर शेर सुन्दर है ...

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  3. शुक्रिया और आभार..... वंदना जी, निधि जी, दिगंबर जी.....
    अपना स्नेह बनाये रखें......

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