शब् की तो अच्छी सियासत है आजकल
घर को तीरगी से ही मुहब्बत है आजकल
उसे भूल चुके हैं पर हिचकियाँ नहीं जातीं
दिल की ये भी अजीब हरकत है आजकल
ख्वाब. खलिश, चुभन, दर्द, यादें, बेबसी
इश्क में लगी कैसी तोहमत है आजकल
सोते से बेसबब ही जाग पड़ता हूँ मैं यूँ ही
नींद में जाने कैसी ये वहशत है आजकल
और हमारे आँगन में भी दरिया बरसा करे
पर खुदा की कहाँ हमपे रहमत है आजकल
अपनी परेशानी में ही इजाफा करते हैं बस
देख तेरी दुआ से बहुत बरकत है आजकल
wah bahut hi khoobsoorat jazbaaton ko ukera hai.
जवाब देंहटाएंआप बहुत अच्छा लिखता हैं और इसकी पुष्टि आपकी यह ग़ज़ल कर रही है
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... लाजवाब गज़ल है हर शेर सुन्दर है ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया और आभार..... वंदना जी, निधि जी, दिगंबर जी.....
जवाब देंहटाएंअपना स्नेह बनाये रखें......