बगैर सितारों का चाँद आसमान में देखो
हूँ तन्हा अब मैं बहुत इस जहान में देखो
कौन आये जो मुझको दुआएं किया करे
पड़ गए हैं आबले सबकी जुबान में देखो
के छोड़ कर अब तो तेरा शहर हम चले
है दर्दो-गम और तन्हाई सामान में देखो
हो गयी है इक सिफर सी अब ये जिंदगी
आ गए हैं कितने सवाल इंतेहान में देखो
देख कर भी वो ना देखने का बहाना करे
हो चले हैं कई फासले दरमियान में देखो
सिवा उसके किसी के ख्याल नहीं बसते
कोई और नहीं रहता इस मकान में देखो
किसी की याद में बरसा है ये अब्र टूट के
पे लोग खुश हैं बारिश के गुमान में देखो
और ''आरज़ू'' है के पूरी नहीं होती "राज़"
कोई नुक्स ही होगा अपने बयान में देखो
Note:-जौन एलिया साहब की एक ग़ज़ल की ज़मीं से.....
बेहद शानदार गज़ल्।
जवाब देंहटाएंआज तो टिप्पणी मे यही कहूँगा कि बहुत उम्दा ग़ज़ल है यह!
जवाब देंहटाएंएक मिसरा यह भी देख लें!
दर्देदिल ग़ज़ल के मिसरों में उभर आया है
खुश्क आँखों में समन्दर सा उतर आया है