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सोमवार, जून 06, 2011

बगैर सितारों का चाँद आसमान में देखो



बगैर सितारों का चाँद आसमान में देखो
हूँ तन्हा अब मैं बहुत इस जहान में देखो 

कौन आये जो मुझको दुआएं किया करे 
पड़ गए हैं आबले सबकी जुबान में देखो 

के छोड़  कर अब तो तेरा शहर हम चले 
है दर्दो-गम और तन्हाई सामान में देखो 

हो गयी है इक सिफर सी अब ये जिंदगी 
आ गए हैं कितने सवाल इंतेहान में देखो 

देख कर भी वो ना देखने का बहाना करे 
हो चले हैं कई फासले दरमियान में देखो 

सिवा उसके किसी के ख्याल नहीं बसते 
कोई और नहीं रहता इस मकान में देखो 

किसी की याद में बरसा है ये अब्र टूट के  
पे लोग खुश हैं बारिश के गुमान में देखो  

और ''आरज़ू'' है के पूरी नहीं होती "राज़" 
कोई नुक्स ही होगा अपने बयान में देखो 

Note:-जौन एलिया साहब की एक ग़ज़ल की ज़मीं से.....

2 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद शानदार गज़ल्।

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  2. आज तो टिप्पणी मे यही कहूँगा कि बहुत उम्दा ग़ज़ल है यह!

    एक मिसरा यह भी देख लें!

    दर्देदिल ग़ज़ल के मिसरों में उभर आया है
    खुश्क आँखों में समन्दर सा उतर आया है

    जवाब देंहटाएं

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