अंदाज-ए-बयां और भी शायराना रहता है
जब उनकी याद और दर्द का ज़माना रहता है
मेरी आँखें यूँ ही छलक पड़ती हैं अचानक
जेहनो-दिल में जब कोई लम्हा पुराना रहता है
मेरे हर्फों में नया कुछ तो होता नहीं अब
हाल ज़ख्मों का ही बस अपने सुनाना रहता है
जाने कैसी है खुदा की हमपे ये इनायत
बर्क की नज़रों में मेरा ही आशियाना रहता है
दर्द की जब भी बढ़ जाती हैं यूँ ही लज्जतें
आलमे-वहशत में फिर हर इक दीवाना रहता है
.........प्रशंसनीय रचना - बधाई
जवाब देंहटाएंगज़ब के भावों का संगम है…………सीधे दिल मे उतरते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गज़ल ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंकाबिले तारीफ!
वाह जी वाह,क्या शायराना अंदाज़ है,लिखते रहें.
जवाब देंहटाएंsundar!
जवाब देंहटाएंआभार ..आदरणीय जनों.. आपके शब्द प्रेरणा दायक हैं....धन्यवाद
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