उनके तो मिलने ना आने के बहाने हज़ार हैं
कभी धूप, कभी बारिश, कभी पापा बीमार हैं
और हम हैं के मान जाते हैं, हर बात उनकी
क्या करें कमबख्त इश्क के हाथों लाचार हैं
उन्होंने सहेली के हाथ से संदेसा है भिजवाया
कैसे आयें हम के दरवाजे पे भैया पहरेदार हैं
नहीं कर सकती मैं तुम्हे एक भी कॉल जानम
माँ, भाभी और छोटी की नज़रें खाँ तीसमार हैं
उनकी गली के कुत्तों को भी हम नहीं हैं सुहाते
वो भी मुए हिफाज़त करते हुए बहुत खुद्दार हैं
सोचा था के चाँद--तारों में देखूंगा शक्ल उनकी
पर अमावस की रात छिप गए सारे मक्कार हैं
उनके आने का यकीं बस स्टॉप पे रहता है इतना
के लास्ट बस जाने तक करते उनका इंतज़ार हैं
लोग कहते हैं मुहब्बत में पगला गया है "राज़"
क्या करें यारों खुशफहमी के हम भी शिकार हैं
बस यही होता है आजकल :)सुंदर प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंवाह ..यह रंग भी खूब जमा है
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ..अलग अंदाज़ दिखा ....बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंमोनिका जी..
जवाब देंहटाएंसंगीता जी..
संजय भाई...
आपकी आमद यहाँ भी सुकून के लम्हे दे गयी... शुक्रिया