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शनिवार, अगस्त 14, 2010

ग़ज़ल की है रौनक-ओ-शान "आरज़ू"


मिरी तहरीर की हुई अब जान "आरज़ू" 
ग़ज़ल की है रौनक-ओ-शान "आरज़ू" 

चाँद सितारे सब तेरे ही तो नाम हैं यहाँ 
है खुदा, इबादत और आसमान "आरज़ू" 

गर्मियों में खिलती धूप सरीखी लगे 
सर्दियों में सुकूँ का सायबान "आरज़ू" 

इक यही और क्या बाकी हसरत मेरी 
हो तुझसे ही अब मेरी पहचान "आरज़ू" 

तेरे सामने बैठूं और तुझे ही देखा करूँ 
ज़माने से है दिल में ये अरमान "आरज़ू" 

तेरे ही दर पे करे सजदा शामो-सहर 
"राज" का हुई जब से ईमान ''आरज़ू" 

5 टिप्‍पणियां:

  1. Sanju भाई,
    कैसे लिख जाते हो यार ऐसा सब..........

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  2. संगीता जी....शुक्रिया....वक़्त देने के लिए

    संजय भाई......बस ख्यालात हैं..
    अल्फाज़ दे देता हूँ.. कुछ उलटे सीधे

    जवाब देंहटाएं
  3. अच्छे ख़यालात। अंतिम पंक्ति में "राज का हुई" में व्याकरण दोष है। सुधार लें।

    जवाब देंहटाएं
  4. संजय भाई साहब....जी शुक्रिया..
    दुरुस्त करने की कोशिश करूँगा

    जवाब देंहटाएं

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