मिरी तहरीर की हुई अब जान "आरज़ू"
ग़ज़ल की है रौनक-ओ-शान "आरज़ू"
चाँद सितारे सब तेरे ही तो नाम हैं यहाँ
है खुदा, इबादत और आसमान "आरज़ू"
गर्मियों में खिलती धूप सरीखी लगे
सर्दियों में सुकूँ का सायबान "आरज़ू"
इक यही और क्या बाकी हसरत मेरी
हो तुझसे ही अब मेरी पहचान "आरज़ू"
तेरे सामने बैठूं और तुझे ही देखा करूँ
ज़माने से है दिल में ये अरमान "आरज़ू"
तेरे ही दर पे करे सजदा शामो-सहर
"राज" का हुई जब से ईमान ''आरज़ू"
बहुत खूबसूरत गज़ल..
जवाब देंहटाएंSanju भाई,
जवाब देंहटाएंकैसे लिख जाते हो यार ऐसा सब..........
संगीता जी....शुक्रिया....वक़्त देने के लिए
जवाब देंहटाएंसंजय भाई......बस ख्यालात हैं..
अल्फाज़ दे देता हूँ.. कुछ उलटे सीधे
अच्छे ख़यालात। अंतिम पंक्ति में "राज का हुई" में व्याकरण दोष है। सुधार लें।
जवाब देंहटाएंसंजय भाई साहब....जी शुक्रिया..
जवाब देंहटाएंदुरुस्त करने की कोशिश करूँगा