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बुधवार, जून 02, 2010

ऐसे आने से तो बहतर था न आना तेरा




कुर्ब के दो लम्हे देके फिर वो जाना तेरा
ऐसे आने से तो बहतर था न आना तेरा

बड़ा परीशां करता है ये मंजर आज हमे 
घटाओं के साथ जुल्फों का लहराना तेरा 

हासिल मुझे वफ़ा का मेरी शायद ये रहा 
मेरे अश्क बहे और हुआ मुस्कराना तेरा 

हैरत में कर गयी रफाकत की ये भी अदा 
बज्म में साथ रकीब के मुझे बिठाना तेरा 

मेरी तश्नगी की कभी कदर ना हुई तुझसे 
गैरों की लिए रहे जाम-ओ-मयखाना तेरा 

मेरी किस्मत में लिख दी है तन्हाई कैसी 
हर सांस में चलता है अब अफसाना तेरा 

तेरी फितरत है जफा तो जफा कर ले तू 
'राज' तो रहेगा बस उम्र भर दीवाना तेरा

3 टिप्‍पणियां:

  1. क्या आशिकाना अंदाज़ है ........ बहुत खूब .......

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  2. शानू भाई.....और.....संजय भाई,,,,,,

    वक़्त देने के लिए आभारी हूँ......खुश रहिये....दुआओं के साथ

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