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मंगलवार, जून 01, 2010

और वो हमको क्या समझे


हम उनको देखो क्या समझे थे और वो हमको क्या समझे 
जिन्हें दिल का खुदा रखा था...... वो हमको बेवफा समझे 

मेरी महफ़िल में आकर भी......वो साथ गैरों के बैठे हैं 
मेरा दिल बस जलाना है....हम इसको भी अदा समझे 

इन यादों के चरागों से...अब घर में रौशनी क्या हो 
बहुत बेख़ौफ़ तूफां है ये.....हम तो बादे सबा समझे 

रवानी अश्कों की मेरे...कभी जब थम सी जायेगी 
वो दिन होगा अजल का और आएगी क़ज़ा समझे 

सितारे टूट कर के आसमाँ से......जब गिर रहे होंगे 
कुबूल होने लगी होगी..उनकी इक और दुआ समझे 

यहाँ सब कुछ हारने वाला......सच में जीत जाता है 
इश्क ऐसी तिजारत है....के दिल खोया नफा समझे 

जब तक के नहीं मिटता...शम्मा उसको नहीं मिलती 
नाम रखा है परवाना...... तो खुद को तू जला समझे 

अजब संजीदगी उसने.......मेरी गलियों में भर दी है 
खिजा की रुत में गुल देखो..फ़ज़ा समझे फ़ज़ा समझे 

उसकी आँखों में अब भी तो...ख्वाब मेरा झलकता है 
ग़ज़ल वो अपनी कहता है....लोग लहजा मेरा समझे 

है फितरत दिल की ये अपने........ज़माने से जुदा रहना 
के जख्म खाकर भी रहते हैं, "राज" तो खुशनुमा समझे

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सही, जज़बात तो ठीक है भाई, मगर जो दिल को खिलौना समझे ऐसे से प्रीत लगाना मुसीबत मोल लेना नहीं है क्या....

    वैसे प्यार तो अंधा होता ही है .... सो क्या कहें..

    वैसे प्रस्तुति लाज़वाब है आपकी.

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  2. शुक्रिया देव भाई......कभी कभी तन्हाई में जीने से अच्छा है की दिल की बात यूँ कह देनी चाहिए....

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  3. इस बार तो दिल जीत लिया ,,तारीफ़ के लिए शब्द नहीं ,,,बहुत ही बेहतरीन गज़ल है ..इसी तरह लिखते रहे ,,,शुभकामनाये

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  4. अंत में ये 'राज़ ' क्यूँ लिखा है समझा नहीं ,,,जरुर ,समझाए .????????????

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  5. राजेंद्र भाई......क्या कहूँ..शब्द नहीं हैं....दिल ही जीतने आये हैं यहाँ......शुक्रिया....खुश रहिये..

    संजय भाई..पसंद करने के लिए आभार...."राज" तखल्लुस है मेरा.....उसको लिखा है ......दुआओं के साथ

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  6. प्रीति जी....शुक्रिया....आपकी निगाहे करम के लिए....दुआओं के साथ..खुश रहिये

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