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गुरुवार, मई 20, 2010

हम ग़ज़ल सुहानी लिख बैठे



छोटी सी कहानी लिख बैठे 
मौसम की रवानी लिख बैठे 
जब भी उसका जिक्र हुआ 
हम ग़ज़ल सुहानी लिख बैठे 

उसके चेहरे को सहर लिखा 
आरिज को दोपहर लिखा 
जुल्फों को काली रात लिखी 
आँखें मस्तानी लिख बैठे 
जब भी उसका जिक्र हुआ 
हम ग़ज़ल सुहानी लिख बैठे

खिजा की रुत को फ़ज़ा लिखा 
दिल का उसको खुदा लिखा 
नादाँ सी वो जब याद आई 
पगली दीवानी लिख बैठे 
जब भी उसका जिक्र हुआ 
हम ग़ज़ल सुहानी लिख बैठे

आलम का उसको नूर लिखा 
कुछ पास तो कुछ-2 दूर लिखा 
उसके आमद की आहट पे 
धड़कन आनी जानी लिख बैठे 
जब भी उसका जिक्र हुआ 
हम ग़ज़ल सुहानी लिख बैठे

8 टिप्‍पणियां:

  1. मन के भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति......आपकी गजल में नये प्रतीक और बिम्ब है......उसका जिक्र और सुहानी गजल का भावानुकूल संयोग गजब का है.........बधाई।

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  2. आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।

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  3. आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ, क्षमा चाहूँगा,

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  4. shukriya bhai.....aap aaye yahi bahut hai.... aabhaar

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  5. KK Bhai...bahut khoobsurat rachna...behad sundar..padh kar man khush ho gaya..

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  6. Shukriya Bhaiyaa............aise hi dua karte rahiye...

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  7. वाह वाह गजब की गजले है

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