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मंगलवार, मई 11, 2010

यादों की बज्म में उसका चर्चा निकला


यादों की बज्म में उसका चर्चा निकला 
तब आँखों से एक और दरिया निकला 

बादे-सबा जब भी चली उसके शहर से 
सीने में एक और जख्म ताजा निकला 

शब् भर उस इन्तजार की हद के पीछे 
मुझसे किया उसका एक वादा निकला 

मैं इक उम्र से उम्मीद-ए-फ़ज़ा लिए था 
ख्वाब बिखरा तो वो भी सहरा निकला 

शाम-ए-तन्हाई को जब सोचा किये हम 
गजलों की शक्ल में हर जज्बा निकला 

कहा आईने को जब कभी हाल अपना 
चटक के टूट गया कैसा बेवफा निकला 

जिस अक्स को लिए "राज" फिरते रहे 
तारीकियों में वो भी ना अपना निकला 

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।

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