मेरी मंजिलें ना रहीं काफिला ना रहा
बगैर उसके कोई सिलसिला ना रहा
चले आये थे क्यूँ तुम लूटने चमन को
गुल यूँ अभी तो एक भी खिला ना रहा
मेरे रकीब से वो जब मिल गया यारों
इश्क में लुट जाने का हौसला ना रहा
जर्द पत्तों ने खुद ही आँधियों को सौंपा
दर्द से सहमे शजर का फैसला ना रहा
मेरा हमराज था पर धोखा कर गया
गैरों से कभी फिर हमे गिला ना रहा
nice
जवाब देंहटाएंshukriya bhai saab....
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