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शनिवार, मार्च 27, 2010

आज फिर आँख नम है


उसके जाने का गम है 
आज फिर आँख नम है 

सांस तो चल रही है पर 
सीने में बाकी ना दम है 

लबों पे हंसी रखूं कैसे 
दर्द कहाँ भला कम है 

ये बहारें बेमानी सी हैं
क्या हिज्र का मौसम है 

ख्याल से निकालूं कैसे 
एक वो ही तो भरम है

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