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बुधवार, मार्च 10, 2010

किसी के लिए इतना तो कर जाएँ


किसी के लिए इतना तो कर जाएँ 
दामन में दुआओं का रंग भर जाएँ 

जब वक़्त के सफ़र में शाम हो कहीं 
चलो यारों यहीं पे हम भी ठहर जाएँ 

माकूल अपने हर ज़वाब तुम रखना 
सवाल करने वाले कहीं ना डर जाएँ 

शोहरत इस ज़माने में गुल सी हो यूँ 
के बनके इक खुशबू बस बिखर जाएँ 

दुआ दो सेहरा में के मौसमे गुल हो 
जहाँ तक हो नजर मंजर सवंर जाएँ 

मेरी गजलों में अब कुछ नहीं बाकी 
चलो तुम भी जाओ हम भी घर जाएँ

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