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बुधवार, मार्च 10, 2010

हम भी दीवाने लगते हैं....



 उसके कंगन उसकी चूड़ी जब दिल को भाने लगते हैं 
वो भी दीवाने हो जाते हैं और हम भी दीवाने लगते हैं 

रात--रात भर जाग के यारों वो रस्ता मेरा तकती है 
उस भोली सी पगली को फिर ख्वाब सताने लगते हैं 

बदली की इस ओट में जब ये चाँद सुहाना खिलता है 
मेरे घर की छत पर से फिर सब पंछी जाने लगते हैं 

बहते बहते वो दरिया जब आकर मुझसे टकराता है 
उसकी तेज रवानी पे भी कुछ साहिल आने लगते हैं 

काफिर नाम हमारा तुमने जाने कब-क्यूँ दे डाला है 
मस्जिद में गर हो अजान, हम भी दोहराने लगते हैं 

करके वादा आते आते जब वो घर अपने रुक जाते हैं 
बारिश का करते हैं बहाना, कुछ कसमे खाने लगते हैं 

उसकी सूरत पे तब हमको यूँ प्यार बहुत आ जाता है 
जब अपनी प्यारी आँखों से वो अश्क बहाने लगते हैं  

शाख से बिछड़ा इक पत्ता जब आंधी से टक्कर लेता है 
हम टूटे सब रिश्तों को फिर चुपके से सजाने लगते हैं 

उसके घर से मेरी गली को, बादे-सबा जब चलती है 
अपने दिल का 'राज' यूँ सारा उसको सुनाने लगते हैं

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