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शनिवार, नवंबर 14, 2009

इश्क में कुछ यूँ दिल पे असर होता है


इश्क में कुछ यूँ दिल पे असर होता है
शब् का आलम भी जैसे सहर होता है

तूफां से गुजरता है जब बेखौफ शजर
तब जाके कहीं शाखों पे समर होता है

तू क्या कहती है के, मैं जुदा हूँ तुझसे
चोट लगती है तुझे, दर्द इधर होता है

मिलते हैं कभी किताबों में गुलाब तेरे
रात भर फिर खुशबू का सफ़र होता है

मुहब्बत गुनाह ऐसा है, के उम्र भर रहे
बस कभी तेरे तो कभी मेरे सर होता है

कैसे यकीन मैं खुद की किस्मत पे करूँ
मुझे हर घडी तुझे खोने का डर होता है

सच है के सुकूँ बहुत मिलता है जान के
हिज्र का मातम जो अब तेरे घर होता है

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