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मंगलवार, जून 30, 2009

अपनी इन ग़ज़लों में, उसकी जवानी रखता हूँ




उसके खूबसूरत अहसासों की कहानी रखता हूँ
अपनी इन ग़ज़लों में, उसकी जवानी रखता हूँ

आसमाँ सी चाहत तो है मुझे दूर तक जाने की
पर अपने क़दमों पे जमीं की निशानी रखता हूँ

और कुछ नहीं कहता आज भी मैं उनके सामने
अपने बुजुर्गों के लिए आँख में पानी रखता हूँ

दुश्मनों को दोस्तों से कभी कम नहीं आंकता
उनके लिए यह सोच अपनी सयानी रखता हूँ

कौन आएगा लेने टक्कर मुझसे मेरी जानिब
एक हाथ में कजा एक में जिंदगानी रखता हूँ

इश्क में बेवफाई करती रहे ये हक है उसको
वफादारी में खुद सा ना कोई सानी रखता हूँ

लाख सितम करे कोई पर उफ़ भी नहीं करता
अपने चेहरे की इबारत बस बेजबानी रखता हूँ

मेरे अहबाब मांग ले तू, मेरी जान किसी रोज
देख मैं क्या क्या जज्ब -ऐ -कुर्बानी रखता हूँ

पीता हूँ, बहकता हूँ, ये इनकार नहीं मुझको
घर की दरो दीवार मगर पहचानी रखता हूँ

तुम मेरी ग़ज़लों पे कभी भी दाद दो या न दो
अपने दिल में इज्जत तुमको पुरानी रखता हूँ

मुझे देखके मेरे अपने भी गमजदा न हो जाये
दिल में छुपा के 'राज' ग़मों की वीरानी रखता हूँ

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत उम्दा किस्म के शेरों के लिये आपकी बधाई...
    बहुत बेहतरीन गजल है
    पढ़वाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

    वीनस केसरी

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  2. are sahab aapne waqt diya.. kismat humari.... duyae aapko..

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