गर कुछ नहीं तो, तजर्बा होगा
जिंदगी फ़र्ज़ है निभाते रहिये
ना सोचिये के आगे क्या होगा
लौट-२ कर माजी में ना जाइये
उसे जाना था वो जा चुका होगा
मेरे हक में बस गम ही आये हैं
शायद यही मंजूर-ए-खुदा होगा
इश्तहार जैसा है चेहरा उसका
हर मुसीबत ने पढ़ लिया होगा
यूँ ही नहीं बरसता है ये बादल
किसी की याद में रो रहा होगा
रतजगों की बात करते करते
नींद की जद में आ चुका होगा
उसे जब बाहों में भर लेंगे हम
वो लम्हा क्या खुशनुमा होगा
तुम्हारा लहजा ग़ज़ल में ''राज़''
अपनी आरज़ू कह गया होगा
बेहतरीन गज़ल.
जवाब देंहटाएंsundar gazal. like it.
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