अँधेरे जायेंगे, उजाले जायेंगे
इक रोज सब निकाले जायेंगे
सच का जनाज़ा निकलेगा औ'
झूठ के परचम संभाले जायेंगे
जब ये जिस्म बूढा हो जाएगा
तो फिर कैसे पेट पाले जायेंगे
दिन में बुराई शराब की करेंगे
रात में गटके वो प्याले जायेंगे
यहाँ भाईचारे की बात करेंगे वो
उधर हमारे सिर उछाले जायेंगे
दिल्ली में सहमी हुई आबरुयें
कौन जाने कब उठा ले जायेंगे
समझदारों के पल्ले ना पड़े हम
हम नासमझों के हवाले जायेंगे
लफ़्ज़ों की भूख जब बढ़ेगी "राज़"
तो कुछ अशआर उबाले जायेंगे
are waaaah waaaaah
जवाब देंहटाएंaapne ek gazal me aaj ke waqt ki poori sachchai bya kr di bhot khub
bar bar padhta rhuga, shayd dil dimag se ye gazal dur nhi hogi...bhot khub
waaaaaaaaaaah bhot khub
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार के "रेवडियाँ ले लो रेवडियाँ" (चर्चा मंच-1230) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह! अत्यंत खूबसूरत रचना |
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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शानदार सामयिक गज़ल,
जवाब देंहटाएंलफ्जों की भूख जब बढ़ेगी "राज"
तो कुछ अशआर उबाले जायेंगे
इस अशआर पर खास तौर से दाद कबूल करें.
धन्यवाद
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