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शनिवार, मई 28, 2011

आंसुओं में ही इक हंसी मिल जाए



आंसुओं में ही इक हंसी मिल जाए 
काश मुझे ऐसी ही खुशी मिल जाए 

एक मुद्दत से तरसी हैं आँखें बहुत 
बस इक जरा सी रौशनी मिल जाए 

मैं पागलों की तरह फिरता हूँ यहाँ 
शायद सुकूँ की जिंदगी मिल जाए 

कहती है वो अदू को बेहतर मुझसे 
आईने देखूं,शायद कमी मिल जाए 

कयामत तलक गुनाह कौन झेले 
के जो भी है सज़ा यहीं मिल जाए 

काफ़िर की दुआ पहुंचे खुदा के दर 
मानो आसमाँ से जमी मिल जाए 

अपने नसीब पे ''राज़'' भी करें फक्र 
पूरी जो वो 'आरज़ू' कभी मिल जाए 

4 टिप्‍पणियां:

  1. खूबसूरत गज़ल. बेहतरीन.बधाई स्वीकारें.

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    ग़ज़ल के सभी अशआर बहुत बढ़िया हैं!

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  3. आंसुओं के बीच एक हंसी मिल जाए ...
    उस ख़ुशी का कोई मोल नहीं ...
    सुन्दर गीत !

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