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सोमवार, नवंबर 15, 2010

मुहब्बत का अजब चलन देख रहा हूँ


मुहब्बत का अजब चलन देख रहा हूँ
आज उस चेहरे पे शिकन देख रहा हूँ

ये कैसी है फिजा में खामोश लहर सी
के शजर के काँधे पे थकन देख रहा हूँ

वो जलना, मचलना, लहराना, बहकना
चराग-ओ-शमा का बांकपन देख रहा हूँ 

रुत-ए-हिज्र और जेहन में याद उसकी
खारों से सज़ा कैसा चमन देख रहा हूँ

झुक गयीं पशेमानी से वो तो ज़फ़ा की
वफ़ा की हवा का खूब फन देख रहा हूँ

आह ने तहरीर को यूँ चूम क्या लिया
दर्द में भी में लुत्फे-सुखन देख रहा हूँ

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