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सोमवार, मार्च 01, 2010

वो जख्म, वो दर्द, वो वीरानियाँ रहती हैं


वो जख्म, वो दर्द, वो वीरानियाँ रहती हैं 
आज भी घर मेरे ये निशानियाँ रहती हैं 

मौसमों के झोंके सा यहाँ वहां फिरता है 
जाने कैसी दिल में परेशानियाँ रहती हैं 

मेरा हर ख्वाब सहर से पहले टूटता है 
कहाँ पे खुदा की निगेहबानियाँ रहती हैं 

मेरे अजीज पीठ पे वार किया करते हैं 
उनकी ऐसी कुछ मेहरबानियाँ रहती हैं 

किसी की जफा को जब वफ़ा कहता हूँ 
चेहरे पे तब उनके पशेमानियाँ रहती हैं 

नहीं तोहमत मैं उस मासूम पे लगाता
याद बस कुछ मुझे नादानियाँ रहती हैं

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