तेरी ख़ुशी का देख मैं कैसे ख्याल रखता हूँ
लबों की हंसी में छिपा के शलाल रखता हूँ
क़यामत तक शायद मुझे सुकूं ना मिलेगा
रुते-हिज्र में जो, उम्मीदे-विसाल रखता हूँ
मेरे रकीबों से उसकी कुर्बतें बढ़ तो गयीं हैं
पर कहाँ मैं इस नसीब पे मलाल रखता हूँ
चैन-ओ-सुकूं बहुत मिल जाता उस दम में
जब के मय को अपना हमख्याल रखता हूँ
मेरे मासूम कातिल पे कोई तोहमत ना लगे
इश्क का हर इल्जाम खुद पे डाल रखता हूँ
मेरी ग़ज़लों में कमियां कब तक निकालोगे
गौर करो, शेरों में कुछ तो कमाल रखता हूँ
मुझे नहीं तो कम से कम तुम्हे प्यार मिले
अपने जेहन में यही तमन्ना पाल रखता हूँ
जमाना हुआ ख़ामोशी के आगोश में रहा हूँ
फिर क्यूँ कहते हो चेहरे पे सवाल रखता हूँ








