
किसी शायर के ख्वाब जैसी है
वो एक खिलते गुलाब जैसी है
क्यूँ लोग संग कहते हैं उसको
वो तो दरिया के आब जैसी है
बड़ा आसान है तार्रुफ़ उसका
वो एक खुली किताब जैसी है
उसके दीदार से नशा छाता है
वो मयकदे की शराब जैसी है
सितारे देख के उसे शर्माते है
वो खुद एक माहताब जैसी है
कोई सवाल कैसे करे उस से
वो सुलझे हुए जवाब जैसी है
वो गुल है खुशबू है केसर की
वो वादियों में चनाब जैसी है
मौसमों में उसकी गुफ्तगू है
वो बहारों के आदाब जैसी है
हया के आईने भी रखती है
वो सरे बज्म नकाब जैसी है
kya baat hai...KK Bhai..kamal ki gazal hai...
जवाब देंहटाएंbas bhaiya,,yun hi hausla dete rahe
जवाब देंहटाएंsanju bhai..........
जवाब देंहटाएंbehad simple alfazon me apne yeh khubsurat kavita likhi hai........ bahut hi acchai lagi....
yunhi likhte rahiye
apka
Nalin - the Lost poet