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सोमवार, अप्रैल 06, 2009

मेरे चेहरे से इश्क का गुमाँ होता क्यूँ है ...

मेरे चेहरे से इश्क का गुमाँ होता क्यूँ है 
जब आग ही नहीं तो धुआं होता होता क्यूँ है 

चटकता है कहीं जब आइना ए-दिल किसी का 
हर बार मुझी पे ही सुब्हा होता क्यूँ है 

दिल न लगाने की यूँ तो कसम उठा रखी है 
उसकी यादो में फिर भी रतजगा होता क्यूँ है 

गर नसीब में अपने खुदा खार लिख गया हो 
तो फसल-ए-गुल से हमको गिला होता क्यूँ है 

एक शख्स जो बहुत खामोश मिला मुझसे 
शहर भर में उसका ही चर्चा होता क्यूँ है 

और मेरे रकीबो से तो वो प्यार से मिलता है 
देख के मुझको ही जाने खफा होता क्यूँ है .

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