याद आ गया वो फिर शाम के ढलने से
रौशनी हो गयी मेरी आँखों के जलने से
उसकी यादों के साये दिल में रह गए यूँ
हासिल ना कुछ हुआ घर के बदलने से
कुछ ऐसा तो नहीं मांग बैठा था मैं उससे
क्या होता दो कदम और साथ चलने से
ये हादसे भी कैसे यहाँ मेरे साथ होते रहे
अँधेरे ना कम हुए सहर के निकलने से
परिंदा रिहाई मांगता तो रहा सय्याद से
पर क़ज़ा कहाँ रही, सर उसके टलने से
दिल निचोड़ के रख दिया साहब...बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंभावों और शब्दों का अद्दभुत समन्वय है
जवाब देंहटाएंभावों और शब्दों का अद्दभुत समन्वय है
जवाब देंहटाएंअमृत जी और देव जी...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार ..जो आप यहाँ तक आये...
..यूँ ही हौसला देते रहिएगा