हिज्र की कलियाँ वो चटखी, नींद रात रानी हो गयी
यादों का बरसा अब्र और चश्मे-रुत सुहानी हो गयी
टूटे-बिखरे ख्वाब और किताबों में मुरझाये गुलाब
मेरे हक में ये मुहब्बत की अच्छी निशानी हो गयी
हमने जो उनको कही थी, वो बात तो कुछ और थी
उन तलक पहुंची तो कुछ की कुछ कहानी हो गयी
चारा-ए-दिल उनका हकीम करते भी तो क्या भला
मर्ज-ए-इश्क की जिन जिन पर मेहरबानी हो गयी
चूम कर बाद-ए-सबा को जब आफताब चल दिया
शर्म से ये खाक ज़मीं की फिर पानी पानी हो गयी
यूँ बंदिशें मगर सोलहवे में अच्छी नहीं लगती उसे
पर माँ उसकी जानती है के लड़की सयानी हो गयी
उसके ख्याल के बाद हमे ना ख्याल आया किसी का
यूँ लगता है जैसे सारी दुनिया से बदगुमानी हो गयी
मीर-ग़ालिब के मुकाबिल है इस जहाँ में ठहरा कौन
उनकी तो ग़ज़लों-नज्मों में बसर जिंदगानी हो गयी
नये कुछ और भी तो मसले उठाओ "राज़" ग़ज़ल में
के वो बात "आरज़ू" की अब कितनी पुरानी हो गयी

वाह......
जवाब देंहटाएंदिल खुश हो जाता है एक एक शेर पढ़ कर...
सुन्दर गज़ल..
अनु
वाह ..बहुत खूब हर शेर लाज़वाब ...
जवाब देंहटाएंआपके गजलो के तो क्या कहने..
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन लिखते है आप
:-)