अहसास तेरा मुझको जिस पल नहीं होता
साँसों का सिलसिला मुक़म्मल नहीं होता
बस तेरी सूरत ही रक्स करती हैं आँखों में
दूसरा चेहरा तो इनमे आजकल नहीं होता
उसे आसान लगा है मुझको भूल जाना पर
वो है के मेरी सोच से भी ओझल नहीं होता
आजार-इश्क की यूँ कोई दवा नहीं मिलती
चारागारों से भी तो मसला हल नहीं होता
जब आँखों से बे-सबब अब्र का कारवां चले
रोकने का फिर उसे कोई आँचल नहीं होता
"राज़" खामोश हैं, तो क्या है अजीब इसमें
अरे इश्क में यूँ हर शख्स पागल नहीं होता