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शनिवार, फ़रवरी 12, 2011

वस्ल की सदा ना लिखना



हिज्र है मुक्क़दर तो वस्ल की सदा ना लिखना 
जो यूँ चराग बख्शा है तूने, तो हवा ना लिखना 

कब करी ख्वाहिश मैंने किसी खजाने की यहाँ 
मेरी किस्मत तू कुछ उसके सिवा ना लिखना 

मुझे हासिल है दर्द में भी इक लज्जत अब तो 
ऐ खुदा अब कोई खुशियों की सबा ना लिखना 

मिल भी जाए गर मेरी पीठ पे यूँ खंज़र उसका 
के वो है मासूम, उसकी कोई खता ना लिखना 

हम अपनी आँखों को ही जला के रौशनी करेंगे 
मेरी खातिर महर-ओ-माह, दुआ ना लिखना 

निखर आएगा रंग सफहों पे अंदाजे-सुखन का 
नाम उसका ही लिखना, कुछ नया ना लिखना 

यूँ तो ग़ज़ल में मैंने अपने ख्याल उतारे रखे थे 
कुछ पता ना था क्या लिखना क्या ना लिखना 

मज़बूरी-ए-हालात की शायद वो रही थी मारी
कभी तुम "राज़" उसको यूँ बेवफ़ा ना लिखना

शनिवार, फ़रवरी 05, 2011

दर्द अपना कुछ मुख़्तसर निकला



दिल की बज़्म से हंस कर निकला 
दर्द अपना कुछ मुख़्तसर निकला 

जिसे अपने अजीजों में रखा मैंने 
खंज़र उसका ही पीठ पर निकला 

शब् यादों की तीरगी में कट गयी 
फिर माह क्या ता-सहर निकला 

तू नहीं गर तो तेरा ख्याल ही सही 
कोई तो अपना हमसफ़र निकला 

कुछ ख्वाब, वीरानी और वहशत 
यही सामान बस मेरे घर निकला 

देखीं थीं जिसने औरों में खामियाँ 
वो ''राज़'' खुद ही बे-बहर निकला 

गुरुवार, फ़रवरी 03, 2011

गर तेरी याद जरा टल गयी होती



गर तेरी याद जरा टल गयी होती 
तबियत अपनी संभल गयी होती 

माह आने का जो वादा ना करता  
रात भी चरागों में जल गयी होती 

तेरे ख्यालों से ही हर्फ़ सजे थे मेरे 
वरना कही कब ग़ज़ल गयी होती 

ग़मों ने ही तो संभाला है मुझको 
ख़ुशी होती तो निकल गयी होती 

काबिल मैं ही ना था शायद उसके 
नहीं तो किस्मत बदल गयी होती 

खामोश दरिया सा मैं लौट आया हूँ 
काश तश्नगी जरा मचल गयी होती 

क़ज़ा के खेल में जिन्दगी हार बैठी 
सोचता हूँ एक चाल चल गयी होती 

बुधवार, फ़रवरी 02, 2011

बहार-ओ-खुशबू का सफ़र याद आया



बहार-ओ-खुशबू का सफ़र याद आया 
आज वो मुझे जब ता-सहर याद आया 

भूल जाने की कसम यूँ खाई तो थी मैंने 
पर वादे से अपने गया मुकर याद आया 

बाद मेरे वो किसपे रौब दिखाते अपना 
वो थे आंधी तो था मैं शजर याद आया 

के जब मिलीं सहरा की उजड़ी बस्तियां 
सच है यारों फिर अपना घर याद आया 

पुकार के हर सदा जब नाकाम लौटी थी 
माँ की दुआ में था जो असर याद आया 

हुए खान्मा-खराब "राज़" जहाँ में जब 
वो गली याद आई वो शहर याद आया