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मंगलवार, सितंबर 20, 2011

रहे हम बस फकीर के फकीर देखिये



इश्क में रांझे की ये तकदीर देखिये 
मिली नहीं कभी उसको हीर देखिये 

शबे-रुखसत को आसमाँ भी बरसा 
किस किस को हुई थी, पीर देखिये 

ग़ज़ल फिर बेहद खूबसूरत सी लगे 
उसके जिक्र से बनी तहरीर देखिये 

उम्रभर दुआ में बस उसे माँगा किये 
रहे हम बस फकीर के फकीर देखिये 

बात जज्बों से पागलपन तक जाए 
आईने में जो उसकी तस्वीर देखिये 

मुहब्बत की असीरी भी अच्छी लगे 
लगे अच्छी जुल्फ की जंजीर देखिये 

वफ़ा के जज्बे पे कुर्बान जाइए "राज़" 
कहते हैं यही ग़ालिब-ओ-मीर देखिये

उससे जो रुखसत की घडी थी



ना जाने कैसी अजीब बड़ी थी 
उससे जो रुखसत की घडी थी 

मेरे बगैर उदास ना रहना तुम 
शर्त उसने तो रख दी कड़ी थी 

इक तरफ उसकी ख़ुशी तो थी 
इधर दिल को अपनी पड़ी थी 

आंसुओं का सैलाब थमा नहीं 
जबके पूरी अभी रात खड़ी थी 

कब तलक अश्क पैहम थमते
चश्म तो बस खामोश अड़ी थी 

सुर्ख शबनम हमारी देख कर 
सहर उस शब् से खूब लड़ी थी

जिंदगी की राह में कई इम्तेहान भी आयेंगे



जिंदगी की राह में कई इम्तेहान भी आयेंगे 
उसे पा लेने और खोने के गुमान भी आयेंगे 

इस मरासिम पे ज़माने को भी ऐतराज़ रहा 
कुछ लोग उसके--मेरे दरमियान भी आयेंगे 

ज़र्रा ज़र्रा ज़मीं का जब करेगा रक्स यूँ ही 
देखने को दूर कहीं से आसमान भी आयेंगे 

इश्क की राह आसान समझ ना मुसाफिर 
बहारें भी मिलेंगी तो बियाबान भी आयेंगे 

संजीदगी शहर में बढ़ जायेगी जिस रोज 
देखना फिर कुछ लोग परेशान भी आयेंगे 

लफ्ज़ हमारे होंगे और लहजा उसका होगा 
अबके ग़ज़ल में तो ऐसे सामान भी आयेंगे