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मंगलवार, जनवरी 29, 2013

मेरे हक में जब भी फैसला होगा




मेरे हक में जब भी फैसला होगा 
पत्थर उनके और सर मेरा होगा

लहुलुहान जिस्म है मेरे शहर का 
फिर से मजहबी खंजर चला होगा 

सावन में बेवक्त बरसता है बादल 
शायद, उसका भी दिल टूटा होगा 

छोड़कर के जिस्म रूह चल देगी 
इक रोज देखना, ये हादसा होगा 

दर्द भी सहना पर कुछ ना कहना  
इश्क के हक में यही लिखा होगा 

नफरतों का मिजाज़ तो पूछिए 
इक मासूम उसमे भी बचा होगा     

बहुत ही सुकून की नींद आती है
उसे तो ग़ुरबत का ही नशा होगा 

मेरी बातों पे यूँ तो रंज है सबको 
पर मेरे बाद इन पे मर्सिया होगा 

बुरा वक़्त सब सिखा देगा 'राज़'   
जो भी मदरसे से बच गया होगा 

मंगलवार, जनवरी 15, 2013

क्या-2, ये जिंदगानी देगी ....




नयी मुश्किलें औ' नयी परेशानी देगी 
चंद रोज में क्या-2, ये जिंदगानी देगी 

बंज़र ख्यालों की रोज खेती करता हूँ  
कभी ना कभी तो ग़ज़ल सुहानी देगी 

लुटती आबरुयें, मक्कार सियासत'दां   
बस यही सब क्या हमे राजधानी देगी 

तरसी आँखें, तन्हा दिल, खामोश लब  
बेशक मोहब्बत कुछ तो निशानी देगी 

पाँव खुद-ब-खुद खिंच जायेंगे उस ओर 
मंजिल दिखाई जो तुमको पुरानी देगी 

मुफलिसी खिलौने नहीं खरीदने देती 
मेरे बच्चे को सुकून कोई कहानी देगी 

ज़हर बुझी बात है तुम्हारी 'राज़' मगर  
जिसे लगेगी उसको सोच सयानी देगी 

मंगलवार, जनवरी 08, 2013

दिल में बाकी पिछली सर्दियाँ रह जायेंगी.....




सूनी, गुमसुम, खामोश बस्तियाँ रह जायेंगी 
खिज़ा आयी तो बस सूखी पत्तियाँ रह जायेंगी 

अबके हिज्र का दिसंबर शायद मैं भुला भी दूं 
पर दिल में बाकी पिछली सर्दियाँ रह जायेंगी 

मुझको मालूम है ये के, तुम न आओगे मगर 
याद करती तुमको मेरी हिचकियाँ रह जायेंगी 

पलट के जब कभी मैं माजी की तरफ देखूंगा
आँखों में लहू, होठों पे सिसकियाँ रह जायेंगी  

है दुआ के खुदा तुमको सुकूँ की जिंदगी बख्शे 
हमारे हक में पुरानी सब चिट्ठियाँ रह जायेंगी 

बुधवार, जनवरी 02, 2013

ता-जिन्दगी ये दिल न कोई आरज़ू करे.....




'आप' से 'तुम' और फिर तुम से 'तू' करे 
हमसे वो इस तरह से कभी गुफ्तगू करे 

इक बार आ कर बस लगे यूँ ही सीने से  
ता-जिन्दगी ये दिल न कोई आरज़ू करे 

ये वो शय है जो के मिलती है नसीबों से 
मोहब्बत की कोई कभी ना जुस्तजू करे 

सारे ऐब-ओ-हुनर आ जाएंगे फिर नज़र 
कभी आईने को जो तू खुद से रु-ब-रु करे

कुछ नहीं हासिल है रंजिश से मेरे दोस्त 
बढाये नफरतें को ये और जाया लहू करे 

बड़ा दुखे है दिल फिर इस प्यारे शहर का 
तार-तार जब कोई दिल्ली की आबरू करे  

उस को दिल से है "राज़" निकालना ऐसे   
फूलों से जुदा जैसे कोई के रंग-ओ-बू करे