फिर से मोहब्बत के वो ज़माने आ जाएँ
गर कैस जैसे कुछ और दीवाने आ जाएँ
कभी वो बे-हिजाब बाम पे चल क्या पड़े
ये चाँद सितारे सब जश्न मनाने आ जाएँ
कोई परिंदा छत पे भले चहके ना चहके
पर जिसे चाहें वो किसी बहाने आ जाएँ
गर हो फलक के अब्र से बूंदों के करिश्मे
सहरा में भी फिर मौसम सुहाने आ जाएँ
आँखों की तश्नगी को भी आराम हो नसीब
याद जो उसकी, पलक छलकाने आ जाएँ
शब्-ए-गम की इन्तेहाँ भी हो किसी रोज
सुबहें खुशियों की जो मुस्कराने आ जाएँ