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गुरुवार, मई 20, 2010

हम ग़ज़ल सुहानी लिख बैठे



छोटी सी कहानी लिख बैठे 
मौसम की रवानी लिख बैठे 
जब भी उसका जिक्र हुआ 
हम ग़ज़ल सुहानी लिख बैठे 

उसके चेहरे को सहर लिखा 
आरिज को दोपहर लिखा 
जुल्फों को काली रात लिखी 
आँखें मस्तानी लिख बैठे 
जब भी उसका जिक्र हुआ 
हम ग़ज़ल सुहानी लिख बैठे

खिजा की रुत को फ़ज़ा लिखा 
दिल का उसको खुदा लिखा 
नादाँ सी वो जब याद आई 
पगली दीवानी लिख बैठे 
जब भी उसका जिक्र हुआ 
हम ग़ज़ल सुहानी लिख बैठे

आलम का उसको नूर लिखा 
कुछ पास तो कुछ-2 दूर लिखा 
उसके आमद की आहट पे 
धड़कन आनी जानी लिख बैठे 
जब भी उसका जिक्र हुआ 
हम ग़ज़ल सुहानी लिख बैठे